एक बार की बात है किसी नगर में हरिदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। उसके पास खेत थे, लेकिन उनमें ज्यादा पैदावार नहीं होती थी। एक दिन हरिदत्त अपने खेत में एक पेड़ के नीचे सोया हुआ था। जैसे ही हरिदत्त की आंख खुली उसने देखा कि एक सांप अपना फन फैलाए बैठा हुआ है। ब्राह्मण को अहसास हुआ कि यह कोई साधारण सांप नहीं है, बल्कि कोई देवता है। ब्राह्मण ने निर्णय लिया कि वह आज से इस देवता की पूजा करेगा। हरिदत्त उठा और कहीं से जाकर दूध ले आया। उसने मिट्टी के बर्तन में सांप को दूध पिलाया।
दूध पिलाते समय हरिदत्त ने सांप से क्षमा मांगते हुए कहा कि हे देव! मैं आज तक आपको साधारण सांप समझता रहा मुझे माफ कर दीजिए। अपनी कृपा दृष्टि से मुझे बहुत सारा धन-धान्य प्रदान करें प्रभु। ऐसा कहकर हरिदत्त अपने घर वापस आ गया।
अगले दिन जब वह अपने खेत पहुंचा, तो उसने देखा कि जिस बर्तन में उसने कल सांप को दूध पिलाया था, उसमें एक सोने का सिक्का पड़ा हुआ है। हरिदत्त ने वो सिक्का उठा लिया। अब हरिदत्त रोज सांप की पूजा करने लगा और सांप रोज उसे एक सोने का सिक्का देने लगा।
कुछ दिन बाद हरिदत्त को दूर किसी देश जाना पड़ा, तो उसने अपने बेटे से कहा कि तुम खेत में जाकर सांप देवता को दूध पिला आना। अपने पिता की आज्ञा से हरिदत्त का बेटा खेत में गया और सांप के बर्तन में दूध रख आया। अगली सुबह जब वह सांप को दूध पिलाने गया, तो उसने देखा कि वहां सोने का सिक्का रखा हुआ है।
हरिदत्त के बेटे ने वो सोने का सिक्का उठा लिया और मन ही मन सोचने लगा कि जरूर इस सांप के बिल में सोने का भंडार है। उसने सांप के बिल को खोदने का फैसला किया, लेकिन उसे सांप का बहुत डर था। हरिदत्त के बेटे ने योजना बनाई कि जैसे ही सांप दूध पीने आएगा, तो वह उसके सिर पर लाठी से वार करेगा, जिससे सांप मर जाएगा। सांप के मरने के बाद मैं तसल्ली से बिल खोदूंगा और उसमें से सोना निकाल कर अमीर आदमी बन जाऊंगा।
लड़के ने अगले दिन ऐसा ही किया, लेकिन जैसे ही उसने सांप के सिर पर लाठी मारी, तो वो मरा नहीं बल्कि गुस्से से भर उठा। सांप ने क्रोध में लड़के के पैर में अपने विष भरे दांतों से काटा और लड़के की उसी समय मौत हो गई। हरिदत्त जब वापस लौटा, तो उसे यह जानकर बहुत दुःख हुआ।
ब्राह्मण और सांप की कहानी (लालच बुरी बला है) कहानी से सीख
बच्चों, लालच का फल हमेशा बुरा होता है, इसीलिए कहते है कि कभी लालच नहीं करना चाहिए। हमारे पास जो भी हमें उसी से संतोष करना चाहिए और हमेशा परिश्रम करते रहना चाहिए।