बरसों पुरानी बात है, एक गांव में देवदत्त नाम का ब्राह्मण अपनी पत्नी देव कन्या के साथ रहता था। उन दोनों की कोई संतान नहीं थी। आखिरकार कुछ वर्षों के बाद उनके घर प्यारे से बच्चे ने जन्म लिया। ब्राह्मण की पत्नी अपने बच्चे को बहुत प्यार करती थी। एक दिन की बात है ब्राह्मण की पत्नी देव कन्या को अपने घर के बाहर नेवले का छोटा-सा बच्चा मिला। उसे देखकर देव कन्या को उस पर दया आ गई और वो उसे घर के अंदर ले गई और उसे अपने बच्चे की तरह ही पालने लगी।
ब्राह्मण की पत्नी बच्चे और नेवले दोनों को अक्सर पति के जाने के बाद घर में अकेला छोड़कर काम से चली जाती थी। नेवला इस दौरान बच्चे का पूरा ख्याल रखता था। दोनों के बीच का अपार स्नेह देखकर देव कन्या बहुत खुश थी। एक दिन अचानक ब्राह्मण की पत्नी के मन में हुआ कि कही यह नेवला मेरे बच्चे को नुकसान न पहुंचा दे। आखिर जानवर ही तो है और जानवर की बुद्धि का कोई भरोसा नहीं कर सकता। समय बीतता गया और नेवला और ब्राह्मण के बच्चे के बीच का प्यार गहरा होता गया।
एक दिन ब्राह्मण अपने काम से बाहर गया हुआ था। पति के जाते ही देव कन्या भी अपने बच्चे को घर में अकेला छोड़कर बाहर चली गई। इसी बीच उनके घर में एक सांप घुस आया। इधर, ब्राह्मण देवदत्त का बच्चा आराम से सो रहा था। उधर, सांप तेजी से उस बच्चे की ओर बढ़ने लगा। पास में ही नेवला भी था। जैसे ही नेवले ने सांप को देखा, तो वो सतर्क हो गया। नेवला तेजी से सांप की ओर लपका और दोनों के बीच काफी देर तक लड़ाई हुई। आखिर में नेवले ने सांप को मारकर बच्चे की जान बचा ली। सांप को मारने के बाद नेवला आराम से घर के आंगन में बैठ गया।
इसी बीच देव कन्या घर लौट आई। जैसे ही उसने नेवले के मुंह को देखा, तो वह डर गई। नेवले का मुंह सांप के खून से लतपत था, लेकिन इस बात से अनजान देव कन्या ने मन में कुछ और ही सोच लिया। वो गुस्से से कांपने लगी। उसे लगा कि नेवले ने उसके प्यारे बेटे की हत्या कर दी है। यही सोचते-सोचते ब्राह्मण की पत्नी ने एक लाठी उठाई और उस नेवले को पीट-पीटकर मार डाला।
नेवले को जान से मारने के बाद ब्राह्मणी अपने बच्चे को देखने के लिए घर के अंदर तेजी से भागी। वहां बच्चा हंसते हुए खिलौनों के साथ खेल रहा था। इसी दौरान उसकी नजर पास में मरे पड़े सांप पर गई। सांप को देखते ही देव कन्या को बहुत पछतावा हुआ। वो भी नेवले से बहुत प्यार करती थी, लेकिन गुस्से और अपने बच्चे के मोह में उसने बिना कुछ सोचे समझे नेवले को मार दिया था। अब ब्राह्मण की पत्नी जोर-जोर से रोने लगी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
उसी समय ब्राह्मण भी घर लौट आया। वह पत्नी की रोने की आवाज सुनकर दौड़ता हुआ घर के अंदर गया। उसने पूछा, “देव कन्या तुम क्यों रो रही हो, ऐसा क्या हो गया।” उसने अपने पति को सारी कहानी सुना दी। नेवले की मौत की बात सुनकर ब्राह्मण देवदत्त को बहुत दुख हुआ। दुखी मन से ब्राह्मण ने कहा, “तुम्हें बच्चे को घर में अकेले छोड़कर जाने और अविश्वास का दण्ड मिला है।”
कहानी से सीख :
बिना सोचे समझे गुस्से में आकर कोई काम नहीं करना चाहिए। साथ ही विश्वास की डोर को कभी शक की वजह से टूटने नहीं देना चाहिए।