बूढ़ी चिड़िया ने कहा चाहे कितने ही सगे हों इन 3 लोगों के साथ अपनी पत्नी को कभी अकेला मत छोड़ना।

नमस्कार मित्रों आज हम आपके लिए ऐसी कहानी लेकर आए हैं जो हर व्यक्ति के लिए जानना बहुत ही जरूरी है, चाहे कोई कितना ही सगा क्यों न हो, अपनी जवान स्त्री, जवान बहन, जवान बेटी को किसी दूसरे पर भरोसा करके उसके साथ भेजना नहीं चाहिए, और ना ही उसके पास छोड़ना चाहिए। चाहे वह कितना ही वफ़ादार और विश्वास पात्र हो।

बूढ़ी चिड़िया ने बताया! चाहे कितने ही सगे हों इन 3 लोगों के साथ अपनी पत्नी को कभी अकेला मत छोड़ना।

Budhi Chidiya ne bataya


साथियों, प्राचीन समय की बात हैं किसी नगर में एक बड़ा सेट रहता था। पूरे नगर में उसका घर सबसे आलीशान था। सेठ की पत्नी बड़ी रूपवान थी तथा पूरे नगर में कोई भी स्त्री सेठ की पत्नी से सुंदर नहीं थी। उस सेठ के घर में एक वटवृक्ष था जिसमें एक बूढ़ी चिड़िया अपना घोसला बनाकर रहती थी। सेट और सेठ की पत्नी उस चिड़िया का खूब ध्यान रखते। चिड़िया को हर रोज़ दाना पानी देते और उसे खूब प्यार करते थे। सेठ के घर में कई पुरुष नौकर जाकर थे और सेट व्यापार के काम से कई दिनों के लिए नगर से बाहर चला जाता था। एक दिन चिड़िया सेठ से कहती है कि सेठ जी आपको अपनी पत्नी को अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहिए। तब सेठ कहता है कि चिड़िया तुम ऐसा क्यों कह रही हो?

तब चिड़िया कहती है कि सेठ जी आप ऐसे नहीं समझेंगे, मैं यह बात आपको एक कहानी के माध्यम से बताती हूँ। चिड़िया कहानी शुरू करती है, चिड़िया कहती है, किसी राज्य में महाराज वीर प्रताप राज़ करते थे। राजा प्रताप कुछ सनकी किस्म का राजा था। एक बार राजा भ्रमण करते करते जंगल में चले गए। जंगल में घूमते घूमते उनकी भेंट एक सन्यासी से होती है। वह सन्यासी एक पाखंडी था, राजा प्रताप साधु संतों पर बहुत भरोसा करते थे। उस साधु को देखकर राजा के मन में कुछ जिज्ञासा उठी। राजा ने सन्यासी को अपना परिचय दिया और पूछने लगा ये साधु महाराज आप बहुत पहुंचे हुए मालूम पड़ते हैं?

मेरी रानी इस समय गर्भवती है, मैं जानना चाहता हूँ कि उसकी कोख से पुत्र होगा या पुत्री? सन्यासी ने कहा राजन् मैं यह तो नहीं जानता कि तुम्हारी रानी की कोख से पुत्र होगा या पुत्री, पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि अगर तुम्हारी रानी ने किसी पुत्री को जन्म दिया तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। सन्यासी की यह बात सुनकर राजा बड़ा भयभीत हो गया और सोचने लगा कि अगर मेरी रानी ने किसी पुत्री को जन्म दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा। यही बात सोच कर राजा को बेटी के नाम से नफरत होने लगी।

उसने अपनी रानी से आकर कहा की है रानी भूल से भी हमारे घर में पुत्री का जन्म नहीं होना चाहिए। अगर हमारे घर में पुत्री पैदा हुई तो मैं तुम्हें जान से मरवा दूंगा और उस पुत्री को भी मार डालूंगा। चिड़िया आगे कहती है कि सेठ जी राजा की यह बात सुनकर रानी डर गई। वह जानती थी कि राजा बड़ा ही जिदी किस्म का है, अगर पुत्री का जन्म हो गया तो वह उसे मरवा सकता है। अब तो रानी रोज़ भगवान से प्रार्थना करती कि हे परमात्मा मुझे पुत्री मत देना, वरना राजा उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे।

भगवान की कृपा से महाराज प्रताप की रानी ने सर्वप्रथम एक पुत्र को जन्म दिया, यह देखकर रानी और राजा बहुत खुश हुए। राजा तो इसलिए खुश हुआ कि पुत्री नहीं हुई, किंतु रानी इसलिए खुश हुई कि अगर पुत्री होती तो कन्या हत्या का दोष लगता। कुछ समय के बाद रानी ने फिर से गर्भधारण किया, बच्चे का जब जनम होने का समय आया, उसी दौरान राजा को किसी जरूरी काम से दूसरे राज्य में जाना पड़ गया और उसे लौटने में कई महीने लगने वाले थे।

जाते जाते। राजा ने अपनी रानी से कह दिया कि यदि तुम्हारे गर्ब से बेटी का जन्म हो तो उसे मरवा देना, मैं बेटी का चेहरा नहीं देखना चाहता, चिड़िया आगे कहती है कि इतना कहकर राजा तो चला गया और उसे अपने नगर लौटने में कई महीनों का समय लग गया। लेकिन इसी दौरान रानी ने एक पुत्री को जन्म दिया, जीस बात का डर था वही हो गया, बेटी को देखकर रानी घबरा गयी और सोचने लगी कि राजा के आदेश के अनुसार बेटी की हत्या करनी पड़ेगी, मैं यह अन्याय कैसे कर सकती हूं? मैं एक माँ हूँ और मेरे लिए जितना मुझे बेटा प्यारा है, उतनी ही बेटी प्यारी है।

अब तो बेटी को देखकर रानी एकदम से रोने लगी और कहने लगी हे भगवान अब मैं क्या करूँ? कन्या हत्या का पाप बहुत बड़ा होता है। पूत कपुत हो सकता है, पर माता कुमाता नहीं हो सकती। रानी बहुत बड़े धर्म संकट में फंस चुकी थी। रानी को रोता हुआ देखकर रानी की दाई पूछने लगी कि, हे रानी घर में पुत्री हुई है, यह तो बड़े ही सौभाग्य की बात है, पर आप तो बैठी बैठी रो रही है, इसका क्या कारण है?

रानी बोली ही दाई वास्तव में जो नहीं होना चाहिए था, वही हो गया है। तब रानी ने दाई को पूरी बात बताई, कि हमारे महाराज ने इस कन्या को मारने का आदेश दिया है। अब आप ही बताइए कि मैं इस बच्ची की जान कैसे ले लूँ? तब दाई ने रानी से कहा हे रानी तुम चिंता मत करो, तुम राजा से कह देना कि मैंने बेटी को मरवा दिया। मैं तुम्हारी बेटी को सबके सामने मारने के लिए ले जाती हूँ, लेकिन मैं इसे मारूँगी नहीं बल्कि इसे पाल लूँगी।

अगर कोई पूछेगा तो मैं कह दूंगी की यह बच्ची मेरी भतीजी है। इससे इस बच्चे की जान भी बच जाएगी और राजा की नजरों से दूर भी हो जाएगी। इसके पालन पोषण को लेकर तुम निश्चित मत रहो। मैं इसे अपनी बेटी की तरह पालूंगी। अब तो यह सुनकर रानी को बड़ी ख़ुशी हुई और सोचने लगी कि यह बेटी भले ही मुझे देखने को ना मिले, लेकिन कम से कम वह जीवित तो रहेंगी।

तब रानी ने बड़े उदास मन से कुछ आभूषण अपनी पुत्री के पालन पोषण के लिए उस दाई को दे दिए और दाई से कहने लगी, दाईमा मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी। जब तुम्हें धन की जरूरत पड़ेगी तो मैं तुम्हें इससे भी अधिक धन दौलत दूंगी।लेकिन मेरी बेटी का यह सच कभी खुलने मत देना।

चिड़िया आगे कहती है कि इतना समझाने के बाद रानी ने अपनी उस बेटी को दाई के हवाले सौंप दिया और धीरे धीरे करके पूरे राज्य और महल में यह खबर फैला दी गई कि दाई ने उस बच्ची को मार दिया और उसे जमीन में दफना दिया। उधर दाई ने उस बेटी का बहुत अच्छे ढंग से पालन पोषण करना शुरू कर दिया। जब कुछ दिनों के बाद राजा अपने राजमहल में लौटकर आया तो राजा को यही बात बताई गई कि आपके जाने के बाद रानी ने एक बेटी को जन्म दिया था और उस बेटी को आपके आदेश के अनुसार मारने के बाद ज़मीन में दफना दिया गया।

यह सुनकर राजा को बड़ी ख़ुशी हुई। उधर दाई उस बच्ची को अपनी भतीजी बताकर पालने लगे और उस बच्ची को जब भी रानी का देखने का मन होता तो दाई उसे लेकर राजमहल में चली आती और किसी के पूछने पर दाई उसे अपने भाई की लड़की बताती।कन्या को देखकर रानी को बड़ा सुकून मिलता था। वह उस दाई को धन, वस्त्र, आभूषण आदि दे दिया करती थी।

इधर रानी के आदेश के अनुसार उस दाई ने बेटी की परवरिश में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं छोड़ी। अब तो धीरे धीरे करके बेटी बड़ी होने लगी। उसका पालन पोषण राजपरिवार में नहीं हुआ था लेकिन फिर भी वह एक सुंदर राजकुमारी की तरह दिखती थी। धीरे धीरे वह सुंदर योवन से संपन्न हो गई। जब वह जवान हो गई तो दाई ने उसे राजमहल में लाना बंद कर दिया। वह पूरे दिन दाई के घर में ही रहती थी। आगे चिड़िया कहती है कि 1 दिन राजा प्रताप अपने नगर का भ्रमण कर रहा था। जब उसकी सवारी उस दाई के घर के सामने से निकली तो वह कन्या अपने घर की छत पर खड़ी होकर स्नान करने के बाद अपने केसों को सुखा रही थी। रूपवती तो वो थी ही, उस समय तो और भी ज्यादा सुंदर प्रतीत हो रही थी।


हाथी पर बैठे राजा प्रताप की अचानक उस कन्या पर नज़र चली गई, क्योंकि वह नवयुवति थी। राजा उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया। राजा ने उसी समय अपने मंत्री से पूछा कि मंत्री यह राजकुमारी जैसी दिखने वाली कन्या कौन है?, मुझे तो इसके रूप में घायल कर दिया। अति शीघ्र इसका पता लगाओ, मंत्री ने तुरंत पता लगाकर राजा को बताया, महाराज यह कन्या एक बूढ़ी औरत के भतीजी है। रात भर राजा को नींद नहीं आई। बार बार उसी लड़की का चेहरा राजा की आँखों के सामने आ जाता।

सवेरा होते ही राजा ने मंत्री से कहा मंत्री जी वह लड़की बहुत सुंदर है, उसने मेरी रातों की नींद उड़ा दी, उसकी मूरत मुझे बार बार परेशान करती है, उसके बिना तो अब मैं नहीं रह पाऊंगा, एक काम करो कुछ लोगों को साथ ले जाकर आप उस बूढ़ी औरत के घर जाइए और उस लड़की के साथ मेरे विवाह की बात कीजिए। उसी दिन राजा के कहने पर राजा का मंत्री अपने कुछ सैनिकों को साथ लेकर उस लड़की का हाथ मांगने बूढ़ी औरत के घर जाता है, और सारी बात दाई को बताता है, कि हमारे राजा साहब आपकी बेटी से विवाह करना चाहते हैं।

आपकी बेटी को राजा साहब अपनी रानी बनाना चाहते हैं, मंत्री के मुख से ऐसे शब्दों को सुनने के बाद दाई के एकदम से होश उड़ गए। दाई मन में सोचने लगी, हे भगवान यह कैसा अनर्थ होने जा रहा है, आखिर अब मैं क्या करूँ? यह कन्या तो उसी राजा की बेटी है और राजा इस बात को नहीं जानता। उस बूढ़ी माँ ने साफ साफ इनकार करते हुए कहा, भाई मैं एक गरीब स्त्री हूँ, मेरी भतीजी राजा साहब के लायक नहीं है, इसलिए आप दोबारा इस रिश्ते को लेकर कभी मेरे घर मत आना।

मंत्री ने कहा माँ तुम कैसी मूर्ख स्त्री हो? राजा के साथ अपनी बेटी का विवाह करने से इनकार कर रही हो? तुझे तो अपना भाग्य समझना चाहिए कि राजा स्वयं तेरी बेटी से विवाह करने का इच्छुक है। मंत्री के बार बार कहने पर भी उस बूढ़ी औरत ने राजा के साथ अपनी बेटी का विवाह करने से इनकार कर दिया। हारकर मंत्री वापस चला गया और राजा को सारी बात बताई कि वह बुढ़िया आपके साथ अपनी बेटी का विवाह करने से इंकार कर रही है।

चिड़िया आगे कहती है कि सेठ जी, इस बार राजा ने कुछ और लोगों को बुढ़िया के घर पर भेजा और उनके द्वारा हजारों तरह के लालच दिए गए। उसे डराया धमकाया भी गया, परंतु वह बूढ़ी औरत इस प्रस्ताव के लिए राजी नहीं हुई। बुढ़िया का हट देख कर राजा एकदम से गुस्से से भर गया। राजा ने उसी समय तुरंत ही हुकुम दे दिया कि उस बूढ़ी औरत को पकड़कर हमारे दरबार में लाया जाए। राजा का आदेश पाने के बाद राजा के सिपाही तुरंत उस बूढ़ी औरत को बंदी बनाकर ले आई।

बंदी बनाने के बाद दरबार में लाकर उस बूढ़ी औरत की खूब पिटाई की गई। सैनिकों की मार को वह स्त्री बर्दाश्त नहीं कर पाई।कोड़ों की मार पड़ते ही बूढ़ी औरत ने राजा के समूह सारी सच्चाई बता दी, कि हे महाराज, वह लड़की कोई और नहीं बल्कि आपकी सगी बेटी है। आपकी रानी ने मुझे जब उस बेटी को मारने के लिए दिया तो मैंने उस बेटी को मारना ठीक नहीं समझा। मारने के बजाय मैंने उसे अपने घर में रख कर अपने भाई की बेटी बता कर उसे पालना उचित समझा।

मैंने ही आपकी बेटी को पाल पोस कर इतना बड़ा कर दिया है। यदि आप अपनी ही बेटी से विवाह करेंगे तो यह बहुत बड़े पाप की बात हो जाएगी। दाई की बात सुनकर राजा चकित रह गया। उसने अपना माथा पीटा और सोचने लगा, हे भगवान मैं कितना बड़ा पाप करने जा रहा था, तुने मुझे इतने बड़े पाप में पड़ने से बचा लिया? अब तो राजा प्रताप को और ज्यादा गुस्सा आने लगा। उसने तुरंत ही अपने बेटे को हुकुम दिया की बेटा अपने बहन को जंगल में ले जाकर इसका सर काट देना और इसे वही दफना देना। प्रमाण के लिए तुम इसकी दोनों आँखें निकाल कर मुझे लाकर देना।

अपने पिता की ऐसी बातों को सुनने के बाद राजकुमार बड़ा परेशान हो गया और सोचने लगा, पिताजी ने मुझे बहुत ही पाप का कार्य सोप है, इतने वर्षों के बाद मुझे मेरी बहन मिली है और उसे मैं अपने ही हाथों से मार डालूं। भगवान मुझे कभी क्षमा नहीं करेंगे। हे भगवान यह पाप मुझसे ना कराये, अब तो राजकुमार सोच सोच कर बड़ा दुखी रहने लगा और मन में सोचने लगा कि किस प्रकार अपने हाथों से अपनी बहन का कतल करूँगा।

किस तरह से मैं अपनी बहन की आँखें निकालूंगा, यदि मैं बहन का कतल करने से मना करता हूँ तो राजा बहुत जिद्दी है, वह मुझसे नहीं तो किसी और से मेरी बहन को मरवा ही देगा, तो मजबूर होकर राजकुमार अपनी बहन को लेकर जंगल की ओर चलने लगा और अपनी बहन से कहने लगा बहन किसी भी सूरत में मैं तुम्हारा कतल नहीं करूँगा, मैं तुम्हें यही जंगल में छोड़ देता हूँ। अब आगे तुम्हारी किस्मत। तब बहन कहने लगी भैया तुम मुझे मार दो और मार कर मेरी आँखें निकाल कर पिताजी को ले जाकर दिखा दो और यदि तुम मेरी आँखें निकाल कर नहीं ले जाओगे तो हमारा पिता तुम्हें भी मार देगा।

उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? अंत में राजकुमार ने निश्चय किया कि वह अपनी बहन को नहीं मारेगा। उसने अपनी बहन को समझाया कि बहन मैं तुम्हें, इस जंगल में छोड़ कर जा रहा हूँ, आगे भगवान मालिक है की वह तुम्हारे साथ क्या करेगा। पिताजी के सामने मैं कोई बहाना बना लूँगा। उसने अपनी बहन को वही जंगल में छोड़ दिया और घर के लिए चल पड़ा। आगे जाकर उसे जंगल में एक हिरण दिखाई दिया। उसने तुरंत उस हिरण का वध किया और उसकी दोनों आँखें निकाल ली। उसके बाद वह अपने पिता के समक्ष पहुंचा और वही हिरण की दोनों आँखें दिखाते हुए कहा, पिताजी मैंने बहन को मारकर एक नदी में फेंक दिया हैं।

वे आँखें देख कर राजा को भी भरोसा हो गया की वास्तव में मेरे पुत्र ने उस लड़की को मार दिया। यह सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ। इधर रानी ने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और पूछा बेटा क्या तू सच में अपनी बहन को मारकर आया है? तब राजकुमार कहता है कि हे मा मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूगा, मैंने अपनी बहन को नहीं मारा, बल्कि मैं उसे जंगल में छोड़ कर चला आया हूँ। यह सुनकर रानी को बड़ा सुकून मिला और भगवान से प्रार्थना करने लगी।

हे भगवान तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद जो तुमने मेरे बेटे को सद्बुद्धि दी। मेरी बेटी जंगल में अकेली भटक रही होगी। तुम उसकी रक्षा करना और उसे ऐसी जगह पर लगा देना की उसके जीवन की नैया पार हो जाए। इधर राजकुमारी जंगल में पत्ते फूल खाकर धीरे धीरे अपना गुज़ारा करने लगी। पेट, पत्थर और कंटीली झाड़ियों के बीच घूमते घूमते उसके वस्त्र बिलकुल फट चूके थे। वह अर्ध नंगन अवस्था में उसी जंगल में भटक रही थी और रात को घने झाड़ियों के बीच छिप कर सो जाती थी।

1 दिन उसी जंगल में एक दूसरे राज्य का राजा चंद्रभान शिकार करने के लिए आया। इधर राजकुमारी वृक्षों से फल तोड़कर खा रही थी। जैसे ही उसके कानों में घोड़े की आवाज पहुंची तो राज कुमारी घनी झाड़ियों के बीच छिप कर बैठ गई। संयोग से राजा उसी वृक्ष के नीचे आकर विश्राम करने के लिए बैठ गया। अचानक राजा की नजर उन झाड़ियों के बीच में गई। उसने देखा की झाड़ियों के बीच कोई बैठा है। किसी मनुष्य की आकृति नज़र आ रही थी। राजा ने फ़ौरन आवाज लगाई तुम कौन हो और इन झाड़ियों के बीच में क्या कर रहे हो? तुम जो भी हो फौरन बाहर निकल आओ, मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, तुम्हें कोई हानि नहीं होगी। राजा की बात सुनकर झाड़ियों के बीच से राज कुमारी ने आवाज दी है। राहगीर मैं एक दुखी, लाचार स्त्री हूँ, मैं निर्वस्त्र हूँ, यदि तुम कोई वस्तर मुझे दे दो तो मैं उसे पहन कर बाहर आ जाउंगी। किसी स्त्री की आवाज सुनकर राजा आश्चर्य चकित था, की इस जंगल के बीच में भला ये स्त्री क्या कर रही है?

जरूर किसी दुख की मारी होगी, तब राजा ने जो चद्दर अपने गले में डाल रखी थी, उसे झाड़ियों के बीच में फेंक दिया। उसके बाद वह राजकुमारी राजा चंद्रभान के सामने आईं। राजा ने जब उसकी सुंदरता को देखा तो वह उसे देखता ही रह गया और सोचने लगा कि इतनी सुंदर स्त्री मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी, किसने इसे जंगल में छोड़ दिया है? यह तो हमारी रानी बनने के योग्य हैं। तब राजा ने अपने बारे में राजकुमारी को सब बताया और बोला, हे सुंदरी तुम जो भी हो उससे मुझे कोई मतलब नहीं।

अब मैं तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ। राजा की बात सुनने के बाद वह राजकुमारी भी उसकी पत्नी बनने के लिए राजी हो जाती है। कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा ही बहुत होता है। यहाँ तो फिर भी एक राजकुमार था जो उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था। चिड़िया आगे कहती है कि सेठ जी इसके बाद राजा उस कन्या को अपने घोड़े पर बैठाकर अपने राज्य में लाया। सबसे पहले वह अपने पिता के समय के एक बुजुर्ग मंत्री के घर पहुंचा और उस लड़की को उस बुजुर्ग मंत्री के घर छोड़ दिया, और उसे कहा कि हे काका आप ऐसा समझो की यह तुम्हारी बेटी है, और मैं इस लड़की से विवाह करूँगा।

यदि मैं ऐसे अपने महल में इसे ले जाता हूँ तो लोग कहेंगे कि राजा किसी कन्या को भगा लाया है, जिससे मेरी मान प्रतिष्ठा पर ठेस पहुंचेगी। मैं इससे विधि विधान के अनुसार विवाह करके इसे अपने घर ले जाना चाहता हूँ। तब तक यह तुम्हारे घर तुम्हारी बेटी बनकर रहेंगी और मैं कल कई लोगों के साथ तुम्हारे घर पर रिश्ता मांगने आऊंगा और फिर इसे अपने घर ले जाऊंगा। तब मंत्री ने कहा महाराज यह आपकी अमानत है और अब यह मेरी बेटी है।

जब आपका मन करें तब आप इसे विवाह कर ले जाना। मैं तब तक इसका ठीक से ख्याल रखूँगा। अगले दिन राजा का सोनीपति और उसका मंत्री उस बूढ़े मंत्री के घर पर गए और उस राजकुमारी का अपने राजा के लिए हाथ मांगा। उसके बाद एक 2 दिन में उसकी मंगानी और विवाह भी कर दिया। विवाह करने के बाद राजकुमारी राजा चंद्र भान की पत्नी बनकर रहने लगी। अब तो दोनों बहुत खुश थे। राजा सुंदर पत्नी पाकर खु़श था और राजकुमारी घर और पति पाकर खुश थी। राजा चंद्रभान ने शादी के बाद भी अपनी पत्नी से कभी भी उसका परिचय नहीं पूछा।

इसी प्रकार दोनों को एक साथ रहते रहते दो वर्ष बीत गए। धीरे धीरे वह समय भी आ गया जब रानी ने पुत्र को जन्म दिया। अब तो राजा चंद्रभान और भी ज्यादा खुश हो गया। 1 दिन राजा ने अपनी रानी से पूछा ये प्रिय अब हम दोनों एक पुत्र के माता पिता बन चूके हैं। हमारा संबंध अटूट हो गया है। अब तुम मुझे अपने कुल खानदान और अपने अतीत के बारे में समझाओ। तब राजकुमारी ने किसी प्रकार से उस बात को टाल दिया। इसी प्रकार से कई वर्ष बीत गए। कुछ समय बाद रानी ने फिर एक पुत्र को जन्म दिया। तब राजा ने फिर से अपनी रानी से वही बात दोहराई। राजकुमारी अपने बीते कल की बातें अपने पति को नहीं बताना चाहती थी, लेकिन राजा ने उसका अतीत जानने की बहुत इच्छा जताई।

रानी जानती थी कि राजा साहब उनसे बहुत प्रेम करते हैं। तब राजकुमारी ने राजा के पूछने परअपने जीवन की सारी कहानी सच सच कहर सुनाई। जब राजा ने राजकुमारी के मुख से ऐसी दुःखभरी दास्तां सुनी तो उसकी भी आँखों से आंसू आ गए। राजा उसके पिता को धिक्कारने लगा। उसके बाद रानी से बोला कि है रानी अगर मैं तुम्हें तुम्हारे पिता से मिलाने ले चलूँ तो क्या तुम मेरे साथ चलोगी? उस राजकुमारी ने अपने पिता से मिलने से इनकार कर दिया। राजा ने बहुत आग्रह किया की एक बार अपने पिता से जरूर मिलना चाहिए।

राजा के बार बार निवेदन करने पर रानी अपने पिता से मिलने को तैयार हो गईं। अगले दिन राजा ने राजा वीर प्रताप के यहाँ जाने का निश्चय किया। रथ सजवा दिया गया, जाने की पूरी तैयारी हो गयी, लेकिन तभी राजा के पास एक जरूरी काम आ गया। राजा को बहुत ज़रूरी अपने दूसरे शहर में जाना था तो राजा ने अपने मंत्री और सेनापति से कह दिया कि तुम सेना की एक टुकड़ी लेकर रानी के साथ चले जाऊं, मैं अपना काम निपटा कर वही पहुँच जाऊंगा।

इस प्रकार राजा चंद्रभान ने अपने मंत्री और सैनिकों के साथ अपनी पत्नी और बच्चों को राजा प्रताप के राज्य की ओर रवाना कर दिया और रानी को भलीभाँति समझा दिया कि वे अपने पिता के वहा जाकर बिल्कुल ना घबराए। वह उनके पहुंचने से पहले ही उनके माता पिता के पास पहुँच जाएंगे। राजा चंद्रभान का मंत्री और सेनापति कुछ सेना को साथ लेकर राजकुमारी के साथ राजा प्रताप के राज्य की तरफ चल पड़े। राजा चंद्रभान का राज्य, राजा प्रताप के राज्य से काफी दूर था, इसलिए चलते चलते रास्ते में ही उन्हें श्याम हो गई।

एक जगह पर उन्होंने अपने डेरा तंबू जमा दिए और रात भर वहीं रुकने का निश्चय किया, जहाँ पर राजकुमारी का डेरा लगाया गया था, उसी जगह पर मंत्री ने भी अपना डेरा लगा दिया। ठीक उसके बराबर में मंत्री का डेरा देखकर राजकुमारी ने जवाब दिया कि हे मंत्री, क्या तुम जानते हो की मैं एक राजा की बेटी हूँ और एक राजा की पत्नी भी ,तो मेरे बराबर में यह डेरा क्यों लगवा रहे हो? तुम अपना डेरा ले जाकर कहीं दूसरी जगह पर लगाओ।

तब मंत्री ने जवाब दिया है रानी साहिबा महाराज ने हमें आपके देख के लिए भेजा है। यदि आपको और आपके बच्चों को कुछ हुआ तो हम राजा को क्या जवाब देंगे? राजकुमारी के बार बार मना करने पर भी मंत्री बिलकुल नहीं माना। इधर शाम को सबने खाना खाया और रात्रि का समय हो गया। सभी लोग पैदल यात्रा चल कर आये थे। हारे थके होने के कारण वे सब जल्दी ही सो गए। रात्रि के दूसरे पहर में मंत्री राजकुमारी के डेरे में घुस आया। जैसे ही मंत्री राजकुमारी के डेरे में घुसा तो तुरंत ही राजकुमारी उठकर बैठ गई।

वह मंत्री की बुरी मनसा को भांप गई थी। अब तो राजकुमारी को अंदाजा हो गया था कि मंत्री के मन में किसी ना किसी प्रकार का खोट है। राजकुमारी ललकार कर बोली खबरदार जो मुझे छुआ तो, डेरे से तुरंत बाहर निकल जाओ। रानी ने मंत्री को बार बार डेरे से बाहर जाने के लिए कहा, लेकिन मंत्री ने कोई बात नहीं मानी। तब राजकुमारी ने अपने बड़े बेटे को मंत्री के सामने खड़ा कर दिया और मंत्री को भगवान और बेटे की दुहाई दी, लेकिन वह पीछे लौटने को तैयार नहीं हुआ। मंत्री एकदम से आगे बढ़ा और तलवार निकालने के बाद राजकुमारी के बड़े बेटे का सिर धड़ से अलग कर दिया।

बेटे का सिर कटने के बाद राजकुमारी तुरंत ही समझ गई कि यह दुष्ट मंत्री अब नहीं मानेगा। तो अपनी लाज बचाने के लिए रानी ने कुछ नरम रुख किया और कहा, तुम थोड़ी देर ठहरो, मैं अभी आती हूँ। इतना कहने के बाद रानी उस डेरे से बाहर निकल गई और वहाँ से भागकर जंगल में चली गई।

सुबह होने तक रानी झाड़ियों में छिपी रही और जब सुबह होने पर लौटकर अपने डेरे में आई तो उसने देखा कि उसके बेटे का सिर कटा हुआ पड़ा है। अपने बेटे की लाश देखने के बाद अब रानी की हालत और भी ज्यादा खराब हो गई। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी? उस शैतान के सामने वो बेबस थी। बेटे की मृत्यु का गम अपने मन में छुपाए वह उनके साथ आगे को चल पड़ी। चलते चलते जब शाम हो गई तो एक जगह पर और रुके। अब तो दूसरी रात के लिए अगला डेरा डाला गया तो राजकुमारी के डेरे के पास में सेनापति ने अपना डेरा लगाया। तब राजकुमारी ने उस सेनापति को बुलाकर कहा कि तुम अपने डेरे को यहाँ से दूर हटाकर लगवा लो, तब सेनापति ने जवाब दिया, हे राजकुमारी, मेरी जिम्मेदारी है कि मैं आपकी सुरक्षा करूँ। राजकुमारी के बार बार मना करने पर भी उस सेनापति ने अपने डेरे को वहाँ से दूर नहीं लगाया।


अब तो राजकुमारी को सब समझ में आ चुका था। इस चिंता को लेकर राजकुमारी पूरी रात सोई नहीं। जैसे ही आंधी रात होती है, उसी समय सेनापति राजकुमारी के डेरे में प्रवेश कर जाता है। राजकुमारी उस सेनापति को ललकारती है। किन्तु वह दुष्ट सेनापति वहाँ से नहीं जाता। तब राजकुमारी ने अपने छोटे बेटे को उस सेनापति के सामने खड़ा कर दिया और उसके कसमें दी, लेकिन सेनापति ने अपने म्यान से तलवार निकाली और उस छोटे बेटे का सिर धड़ से अलग कर दिया।

इस प्रकार से राजकुमारी के दूसरे बेटे का सिर भी कट गया। तब राजकुमारी ने कहा हे सेनापति तुम थोड़ा सा रुको, मैं अभी आती हूँ। चिड़िया आगे कहती है कि सेठ जी अब तो राजकुमारी वहाँ से भाग निकले और भागते भागते वह जंगल में चली गई। आगे जाकर उसे एक गहरी नदी दिखाई दी। अब तो राजकुमारी ने मन में यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि जब मेरी संतान ही नहीं रही, मेरे बच्चे ही नहीं रहे, तो फिर मैं जीकर क्या करूँगी?

ऐसा निश्चय करके वह मरने के उद्देश्य से नदी में कूद गई। परन्तु पानी का बहाव इतना तेज था कि जैसे ही रानी उस नदी में कूदी तो पानी का बहाव उसे एकदम से खींचकर ले गया। सुबह हो चुकी थी, दो सन्यासी महात्मा उसी नदी में अपने गुरु के वस्त्र धोने के लिए आए थे। उन सन्यासी महात्मा ने देखा कि कोई औरत इस नदी में बहते हुए हमारी तरफ आ रही है तो उन दोनों योगियों ने रानी को पकड़कर बाहर निकाल लिया।

जैसे ही दो योगियों ने राजकुमारी को पकड़ा तब तक चार सन्यासी महात्मा और आ पहुंचे। राजकुमारी की सुंदरता को देखकर महात्मा आपस में लड़ने लगे और कहने लगे यह राजकुमारी मेरी है। आखिर अंत में संत महात्मा आत्माओं ने यह सोचा कि ऐसे तो हम छह में से कोई फैसला नहीं हो पाएगा। हम अपने गुरूजी के पास में इस राजकुमारी को लेकर चलते हैं। वही हमारा फैसला करेंगे। योगियों के जो गुरु थे वे बड़े ही विद्वान और तपस्वी संत थे।

गुरूजी ने उस औरत को देखते ही समझ लिया कि यह स्त्री कोई राज़ घराने से है। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को समझाया कि है शिष्य तुम छह भाई हो और तुम्हारी कोई बहन नहीं है। तुम एक काम करो, इसे अपनी बहन के रूप में अपनाओ। यदि यह तुम्हारी बहन बनकर तुम्हारे आश्रम में रहेंगी तो एक ना 1 दिन तुम्हारी जिंदगी बदल जाएगी। इस प्रकार गुरु के समझाने पर उनके समझ में आ गया और उन्होंने रानी को अपनी बहन बना लिया। वह साधु उसके ही पिता राजा प्रताप के राज्य में रहते थे। अब तो उस राजकुमारी को पता चल चुका था कि वह अपने पिता के राज्य में प्रवेश कर चुकी है।

रानी उन्हीं महात्माओं के आश्रम में रहने लगी। वे छह महात्मा उसे अपनी बहन की तरह रखते थे। चिड़िया आगे कहती है कि सेठ जी उधर राजा चंद्रभान अपने मंत्री और सेनापति तथा सेना से आकर मिला और अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में पूछा। तब मंत्री और सोनापति कहने लगे महाराज हमें क्षमा करें, आपकी रानी रानी नहीं थी, वह तो एक डायन थी, वह आपके दोनों पुत्र को मारने के बाद यहा से भाग गयी। उन्होंने इस प्रकार से कहा कि राजा चंद्रभान को विश्वास हो गया और सोचने लगा कि अगर कोई झूठ बोलेंगे तो एक बोलेंगे, दूसरा क्यों बोलेंगे? तो राजा चंद्रभान ने हुक्म दिया कि अब तो हम उसके पिता राजा प्रताप के पास जरूर जाएंगे।

अति शीघ्र सब लोग राजा प्रताप के पास चलिए। उधर तो राजा चंद्रभान अपनी सेनापति और मंत्री के साथ अपनी पत्नी के पिता के पास जाता है और इधर राजकुमारी ने अपने छह भाइयों से कहा जो उस समय योगी के रूप में थे, कि ये भाइयों तुम सभी राजा के पास जाओ और राजा से कहना कि हमारी बहन आपके दरबार में आना चाहती है। यदि राजा साहब किस्सा सुनना चाहते हैं तो हम उन्हें दरबार में बुलाकर लाये, क्योंकि राजकुमारी को पता था कि हमारे पिता को किस्सा सुनना बहुत अच्छा लगता है। अब तो योगी भिक्षा के बहाने राजा वीर प्रताप के दरबार में पहुँच गए और उन्होंने राजकुमारी के द्वारा कही गई बात राजा के सम्मुख जाकर रखी।योगियों की बात सुनने के बाद राजा ने तुरंत ही उन्हें इजाजत दे दी।

अब तो किस्सा सुनाने के लिए अगले दिन योगी अपनी बहन को लेकर राज़ दरबार में पधारे। उस समय राजकुमारी योगियों को भेष में थी इसलिए कोई पहचान नहीं पाया। जब उसने राज़ दरबार में किस्सा सुनाया तो सब लोग बड़े ध्यान से सुनने लगे। राजा को उस लड़की का किस्सा बहुत पसंद आया। अब राजा ने बहुत सारा इनाम दिया, सभी योगी बोले महाराज जब भी आपकी इच्छा होगी तो हम अपनी बहन को लेकर आ जाएंगे। अब तो वह हर रोज़ अपने भाइयों के साथ राजा के दरबार में किस्सा सुनाने आया करती थी। इस प्रकार वह राजकुमारी रोज़ राजा को कहानी सुनाने के बाद इनाम पाती तथा अपने योगी भाइयों के साथ वापस लौट जाती।

धीरे धीरे उन सन्यासियों के तो दिन ही बदल गए। पहले वह योगी बन कर नगर नगर जाकर भिक्षा मांगते थे। अब तो उन्हें राजा से ही इतना धन प्राप्त हो गया था कि कहीं मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। 1 दिन जब राजकुमारी राजा को किस्सा सुनाने के लिए उनके राज़ दरबार में आई तो उसने अपने पति, मंत्री और सेनापति को वही बैठे हुए देखा। तब राजकुमारी ने सोचा, आज तो यह सभी यहीं पर उपस्थित है तो किस्सा सुनाने में बहुत ज्यादा आनंद आएगा। तब राजकुमारी पर्दे की आड़ में अपनी जगह पर आकर बैठ गई और अपने पिता से कहने लगी, हे राजा साहब आज मैं आपके लिए बहुत ही दर्द भरी कहानी और किस्सा लेकर आई हूँ। यदि कहानी को प्रारंभ करने से पहले किसी को कोई जरूरी काम है तो अभी दरबार से उठकर जा सकता है।

किस्सा सुनाने के दौरान यदि कोई व्यक्ति बीच में से जाएगा तो मैं उसी समय अपना किस्सा सुनाना बंद कर दूंगी। तब राजा ने जवाब दिया बेटी तुम सुनाओ, तुम जैसा कहोगी हम वैसा ही करेंगे। किस्से के बीच में से कोई दरबार में से उठकर नहीं जाएगा। अब तो राजा और दरबार के सभी दरबारी किस्सा सुनने के लिए बैठ गए। उनमें उसका पति और वह विश्वासघात मंत्री और सेनापति भी था।अब राजकुमारी राजा के दरबार में अपना किस्सा शुरू करती है।

राजकुमारी कहने लगी है सभा के लोगों इस किस्से को ध्यान से सुनना, किसी देश में एक राजा रहता था जो बड़ा ही जालिम राजा था। उस राजा को अपनी पुत्री से बहुत ज्यादा नफरत थी। जब 1 दिन उसके यहा एक बेटी ने जन्म लिया तो उसने अपनी बेटी को अपने बेटे के हाथ जंगल में मरवाने के लिए भेज दिया। राजा ने अपने बेटे को हुकुम दिया की उस बेटी को मारने के बाद उसकी आंखें निकाल लाना। उसकी कहानी को सुनने के बाद राजा प्रताप सोचने लगे कि यह तो मेरा ही किस्सा है। खुश होकर प्रताप ने उन योगियों के पास में अपनी मोतियों की माला फेंकते हुए कहा की अंत तक जरूर सुनाया जाए।

अब तो राजा की आँखों में पानी भर आया क्योंकि राजा प्रताप को अपनी करनी पर बहुत पश्चात होता था। फिर राजकुमारी आगे बताने लगी कि महाराज जब उसका भाई उसे मारने के लिए जंगल में ले गया तो उसके भाई ने उस राजकुमारी को नहीं मारा और वहीं जंगल में छोड़कर वापस राजभवन में लौट आया। यह जानकार राजा थोड़ा प्रसन्न हुआ। राजा मन में सोचने लगा, शायद हो सकता है आज भी मेरी बेटी जिंदा हो। इधर वह राजकुमारी अपने किस्से को सुनाते हुए आगे बोली, जब उसका भाई उस लड़की को जंगल में छोड़ आया, तब वह बेचारी भूखी प्यासी इधर उधर भटकने लगी। भूख लगने पर वृक्षों के पत्ते और फल फूल खा लिया करती थी। इसी तरह से वह अपने आप को जीवित रखती थी। इस प्रकार से जंगल में रहते रहते उस बेटी के तन पर एक भी वस्त्र साबित नहीं बचा तो कहीं से 1 दिन घूमता हुआ घोड़े पर सवार एक आदमी आया।

वह आदमी किसी देश का राजा था, उसकी नजर जब उस लड़की पर पड़ी तो वह उसे अपने नगर ले गया और बिना कुछ जाने राजा ने उस लड़की से विवाह कर लिया। इसी बीच में अपनी कहानी को सुनकर राजा चंद्रभान समझ गया कि यह तो उसका ही किस्सा है। उसने भी खुश होकर एक मोतियों की माला जोगियों के पास फेंक दी और बोला यह किसा जारी रखा जाए और यह किस्सा अंत तक होना चाहिए।

तब आगे राजकुमारी कहने लगी। अब तो वह लड़की किसी राजा के रानी बन चुकी थी। राजा की रानी बनने के बाद उस लड़के की कोख से दो बेटों ने जन्म लिया। 1 दिन उसके पति ने अपनी पत्नी से उसके जीवन की पूरी घटना पूछी की तुम कौन हो और उस जंगल में क्यों भटक रही थी? तब उस लड़की ने अपने बाप की करतूतें अपने पति को बताई। यह सुनकर उसका पति बड़ा दुखी हुआ। उसका पति दिल का बहुत अच्छा इंसान था। यह जानकार कि उसकी पत्नी का पिता एक राजा है तो उसे उसके पिता से मिलाने के लिए उस राजा ने अगले दिन तैयारी की, लेकिन उसने एक गलती कर दी।

उसने अपनी पत्नी और बेटों की सुरक्षा के लिए स्वयं न जाकर अपने मंत्री और सेनापति को उसके साथ भेज दिया, और यह उसकी सबसे बड़ी भूल थी। क्योंकि कहते हैं चाहे कोई कितना ही सगा क्यों न हो, अपनी जवान, स्त्री, जवान, बहन, जवान, बेटी को किसी दूसरे पर भरोसा करके उसके साथ भेजना नहीं चाहिए, और ना ही उसके पास छोड़ना चाहिए। चाहे वह कितना ही वफ़ादार और विश्वास पात्र हो।

मगर जब वासना दिमाग पर हावी होती है तो सारी वफ़ादारी, सारा विश्वास धरा रह जाता है। राजा प्रताप और राजा चंद्रभान उस किस्से को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। राजकुमारी आगे कहती हैं कि उधर उस राजा ने अपनी पत्नी और बच्चों को मंत्री और सेनापति के साथ भेज दिया। सफर ज्यादा लंबा था। चलते चलते जब रास्ते में सूर्यास्त हो गया तो उन्होंने वही रुकने का निश्चय किया। मंत्री ने अपना डेरा रानी के डेरे के बराबर में लगवाया।

रानी ने इसका बहुत विरोध किया, पर वह नहीं माना और रात्रि के समय में मंत्री ने उस राजकुमारी के साथ दुष्कर्म करने की सोंची, राजकुमारी के बार पार निवेदन करने पर भी वह दुष्ट मंत्री नहीं माना, बल्कि उसने राजा के बेटे का भी कतल कर दिया। जब बेटे का कतल कर डाला तो रानी अपना धर्म बचाने के लिए मंत्री से बहाना बनाकर जंगल में भाग गयी। रात जंगल में गुजारकर जैसे तैसे उस बेचारी ने अपने पतिव्रत धर्म को बचाया।

जब दूसरे दिन रानी अपने डेरे में वापस आई तो उसे अपने बेटे की लाश भी नहीं मिली। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती जा रही थी, उधर मंत्री के होश खराब होते जा रहे थे। अब तो धीरे धीरे वह मंत्री भी बहाना बनाते हुए राजा के दरबार से उठ कर जाना चाहता था तो राजा ने तुरंत उसे डांट कर बिठा दिया। तब रानी आगे सुनाने लगी। अब दूसरे दिन को जब वह वहा से आगे को चले और एक जगह रास्ते में फिर से डेरा तंबू लगाए, तो उस रात सेनापति डेरी में घुसकर दुष्कर्म की लालसा से रानी के पास जा पहुंचा।

रानी ने पहले तो उसे खूब ललकार कर समझाया कि वह वहा से चला जाए, लेकिन वह दुष्ट लौटने को तैयार नहीं हुआ। रानी ने उसे अपने छोटे बेटे की कसम दी। यह कहानी सुनकर सेनापति भी घबराने लगा और सोचने लगा कि यह तो मेरा भेद खुल रहा है, वह भी उठकर भागने को हुआ तो राजा ने डांटकर उसे भी बिठा दिया। राजा चंद्रभान ने कहा क्यों भाई, सच्चाई तुमसे सुनी नहीं जा रही क्या, सेनापति अपना मुँह लटकाकर चुपचाप बैठ गया? इधर किस्सा जारी था।

राजकुमारी कहने लगी, फिर उसके सेनापति ने भी रानी के छोटे बेटे का कतल कर दिया। वह ग़लत भाव लेकर रानी के पास बढ़ता गया तो उस समय पर किसी ना किसी प्रकार से वह राजकुमारी अपनी जान बचाकर वहा से भाग निकले और वहा से एक नदी में कूद गई। लेकिन उसकी किस्मत ने वहाँ पर भी उसका साथ नहीं दिया।

वह बेचारी जिंदा बच गई। उस नदी में बहते बहते वह आगे चली गई और जंगल के दूसरे छोर पर 6 योगियों के हत्थे चढ़ गई। सन्यासियों ने भी उस राजकुमारी को अपनी पत्नी बनाना चाहा, परंतु उनके महान विद्वान गुरूजी ने उन सन्यासियों से यह पाप होने से बचा लिया। और गुरूजी के बार बार समझाने पर सन्यासियों ने उस राजकुमारी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार कर लिया।फिर वे भाई अपनी बहन को राजा के यहा पर किस्सा सुनाने के लिए रोज़ ले जाने लगे।

इतनी कहानी सुनाने के बाद वह राजकुमारी अपना पर्दा हटाकर राजा के सामने आकर खड़ी हो गई। अपनी कन्या को देखकर राजा प्रताप भी उसे पहचान गए और उधर अपनी पत्नी को देखकर राजा चंद्रभान की आँखें भर आई। पत्नी को सामने देकर राजा चंद्रभान बहुत खुश हुआ, लेकिन अपने पुत्र के मृत्यु का दुख उसे खाये जा रहा था। राजा चंद्रभान राजा प्रताप से आज्ञा मांगने लगा कि महाराज, मेरा मंत्री और मेरा सेनापति मेरा ही शत्रु है।

इसी में स्वयं दंड देना चाहता हूँ। तब उसी समय राजा चंद्रभान ने उन दोनों के सर कलम कर दिए। पापियों को उनकी करनी का दंड मिल चुका था। इधर राजा प्रताप ने अपनी बेटी को सीने से लगा लिया और बार बार उससे अपने किए की क्षमा मांगने लगा। बेटी ने अपने पिता को क्षमा कर दिया। इस प्रकार से राजकुमारी अपने पति के साथ कुछ दिन तक अपने पिता के घर पर रही और बाद में बड़ी हँसी खुशी के साथ उसके पिता ने अपनी बेटी को बड़ी धूमधाम से विदा किया।

राजा चंद्रभान अपनी पत्नी को लेकर अपने नगर लौट आया और हँसी खुशी के साथ समय व्यतीत करने लगा। कुछ ही समय बाद रानी दो और बेटो जन्म दिया। अब तो उनकी खोई हुई खुशी सारी वापस आ चुकी थी। इसीलिए कहते हैं, भगवान अगर किसी के पक्ष में होता है तो कोई भी उसका बाल भी बाका नहीं कर सकता, चाहे कोई कितना भी प्रयास कर ले, कोई उसे मार नहीं सकता। मृत्यु जीवन यह विधाता के हाथ में होता है। इंसान के हाथ में कुछ नहीं होता। आपको यह प्रेरणादायक कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में जरूर लिखे, धन्यवाद

बूढ़ी चिड़िया ने बताया! कहानी विडियो।

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