महाभारत की कहानी: भक्त ध्रुव की कथा | Mahabharat Aur Dhruv Ki Kahani

धार्मिक और पौराणिक कथाओं में हमें जीवन की महत्वपूर्ण सीखें मिलती हैं। यह कहानी राजा उत्तानपाद और उनके पुत्र ध्रुव की है, जो हमें सच्ची भक्ति, धैर्य, और समर्पण के महत्व को समझाती है। यह कहानी हमें बताती है कि यदि हम अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहें और ईश्वर में आस्था रखें, तो असंभव भी संभव हो सकता है।

महाभारत की कहानी: भक्त ध्रुव की कथा

प्राचीन समय की बात है, राजा उत्तानपाद की दो रानियां थीं, सुनीति और सुरुचि। सुनीति बड़ी रानी थीं और सुरुचि छोटी रानी। राजा का झुकाव सुरुचि की तरफ ज्यादा था क्योंकि वह अत्यंत सुंदर थीं, जबकि सुनीति सरल और समझदार स्वभाव की थीं। राजा के सुरुचि के प्रति अधिक प्रेम के कारण सुनीति दुखी रहती थीं और अपना समय भगवान की पूजा-अर्चना में व्यतीत करती थीं।

सुनीति का एक पुत्र था जिसका नाम ध्रुव था और सुरुचि का पुत्र उत्तम था। एक दिन ध्रुव अपने पिता राजा उत्तानपाद की गोद में जाकर बैठ गया। यह देखकर सुरुचि को बहुत गुस्सा आया। उसने ध्रुव को राजा की गोद से उतारते हुए कहा, “तुम राजा की गोद में नहीं बैठ सकते, यहाँ केवल मेरे पुत्र उत्तम का अधिकार है।”

यह सुनकर ध्रुव बहुत दुखी हुआ और रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया। ध्रुव ने अपनी मां को सारी बात बताई। सुनीति ने ध्रुव को चुप कराते हुए कहा, “भगवान की आराधना में बहुत शक्ति है। अगर तुम सच्चे मन से भगवान की आराधना करोगे, तो तुम्हें सब कुछ मिलेगा।”

ध्रुव ने सच्चे मन से भगवान की आराधना करने का निर्णय लिया और जंगल की ओर प्रस्थान किया। रास्ते में उसे ऋषि नारद मिले। नारद ने ध्रुव से पूछा कि वह कहां जा रहे हैं। ध्रुव ने उन्हें अपनी कथा सुनाई और भगवान की तपस्या करने की इच्छा जताई। नारद ने ध्रुव को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करने का सुझाव दिया।

ध्रुव जंगल में जाकर कठोर तपस्या करने लगे। उनकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा, “तुम्हारी तपस्या से मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हें राजसुख मिलेगा और तुम्हारा नाम सदैव अमर रहेगा।”

भगवान के आशीर्वाद से ध्रुव राजमहल वापस लौट आए। राजा उत्तानपाद ने ध्रुव को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें राज्य सौंप दिया। ध्रुव की भक्ति और तपस्या के कारण उनका नाम सदैव के लिए अमर हो गया और आज भी आसमान में ध्रुव तारा के रूप में उनकी भक्ति को याद किया जाता है।

कहानी से सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि हम धैर्य और सच्चे मन से प्रार्थना करें और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहें, तो हमारी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. ध्रुव ने अपनी मां से क्या शिकायत की?
  • ध्रुव ने अपनी मां से शिकायत की कि रानी सुरुचि ने उन्हें राजा की गोद से उतार दिया और कहा कि राजा की गोद में बैठने का अधिकार केवल उनके पुत्र उत्तम का है।
  1. ध्रुव ने भगवान की तपस्या क्यों की?
  • ध्रुव ने भगवान की तपस्या इसलिए की ताकि वे अपने पिता की गोद और सिंहासन प्राप्त कर सकें, जैसा कि उनकी मां ने उन्हें समझाया था।
  1. ध्रुव को तपस्या के दौरान किस ऋषि ने मार्गदर्शन दिया?
  • तपस्या के दौरान ध्रुव को ऋषि नारद ने मार्गदर्शन दिया और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करने का सुझाव दिया।
  1. भगवान विष्णु ने ध्रुव को क्या आशीर्वाद दिया?
  • भगवान विष्णु ने ध्रुव को आशीर्वाद दिया कि उन्हें राजसुख मिलेगा और उनका नाम सदैव के लिए अमर रहेगा।
  1. ध्रुव तारा किसे कहा जाता है और क्यों?
  • ध्रुव तारा, ध्रुव की भक्ति और तपस्या के प्रतीक के रूप में आकाश में सबसे अधिक चमकने वाला तारा है। यह ध्रुव की अडिग निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है।
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